Kisan Andolan 2.0- क्या है अन्नदाताओं की मांगे एवं शर्तें, और क्या है आंदोलन की रणनीति

Kisan Andolan: पंजाब के किसान समूहों ने, जिन्होंने दो साल पहले तीन नए कृषि कानूनों की वापसी के बाद अपना विरोध समाप्त किया था, मंगलवार को एक बार फिर दिल्ली की ओर मार्च करने का निश्चय किया। इस बार का विरोध हरियाणा के माध्यम से, दिल्ली की ओर बढ़ने का प्रयास था।

Kisan Andolan
                                                            Kisan Andolan

 

Kisan Andolan 2.0 क्या है, किसान आंदोलन, किसान आंदोलन क्या है, किसान आंदोलन के कारण, किसान आंदोलन की ताजा खबर, किसान आंदोलन की मांग क्या है किसान आंदोलन दिल्ली, किसानों की क्या है शर्तें, Kisan andolan kya hai, kisan andolan latest news

kisan andolan bijoliya kisan andolan why kisan andolan started again kisan andolan update today kisan andolan start date kisan andolan in india kisan andolan 2021 kisan andolan 2020 kisan andolan delhi kisan andolan in hindi kisan andolan ambala kisan andolan ambala today kisan andolan amritsar today kisan andolan affected areas kisan andolan affected trains kisan andolan affected routes kisan andolan at which place kisan andolan aaj tak kisan andolan aaj ki khabar kisan andolan april 2024 alwar kisan andolan

दिल्ली की सीमाओं पर अपना एक वर्ष लंबा विरोध समाप्त करने के दो साल बाद, तीन नए कृषि कानूनों की वापसी के बाद, पंजाब के किसान समूह मंगलवार को फिर से दिल्ली की ओर मार्च करने के लिए सड़क पर उतर आए, जबकि सुरक्षा बलों ने उन्हें रोकने के लिए बहु-स्तरीय बैरिकेड्स लगाए और आंसू गैस के गोले दागे —

कुछ ड्रोन से गिराए गए —। हरियाणा ने अपनी सीमाओं को मुहर लगा दी, जिससे पंजाब-हरियाणा सीमा पर दो जगहों पर – शंभू (पटियाला-अंबाला सीमा) और खनौरी (संगरूर-हिसार सीमा) पर पूरे दिन तनाव बना रहा। कम से कम 26 प्रदर्शनकारियों और कुछ अर्धसैनिक कर्मियों को झड़पों में चोटें आईं। दो मीडियाकर्मी भी उनमें शामिल थे जो घायल हो गए।

किसान आंदोलन 2.0 क्या है?

भारत के अन्नदाता, किसान, दो वर्षों के अंतराल के बाद एक बार फिर दिल्ली की दहलीज़ पर अपनी मांगों के साथ दस्तक दे रहे हैं। इसे ‘किसान आंदोलन 2.0’ का नाम दिया गया है। आइए, इस आंदोलन की मुख्य वजहों, मांगों, और उसकी अगुवाई कर रहे संगठनों पर एक नज़र डालें।

साल 2020 में, भारत सरकार द्वारा तीन कृषि बिलों को पेश किया गया था। इन बिलों का किसान समुदाय ने कड़ा विरोध किया था, जिसका मुख्य कारण यह था कि किसानों को डर था कि ये कानून उन्हें बड़ी एग्री-कमोडिटी कंपनियों के हाथों में निर्भर बना देंगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी को खत्म कर देंगे। इस आंदोलन ने 13 महीने तक चलने के बाद अंततः सरकार को तीनों कानूनों को वापस लेने पर मजबूर कर दिया था।

Kisan Andolan
                  Kisan Andolan
किसान आंदोलन 2.0 की मांगें

इस बार किसानों की मांगें पहले से अधिक व्यापक हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. कृषि ऋण माफी: किसानों और मज़दूरों के लिए एक व्यापक ऋण राहत कार्यक्रम की मांग की जा रही है।
  2. भूमि अधिग्रहण कानून: 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को फिर से लागू करने और किसानों को अधिक मुआवज़ा देने की मांग।
  3. पेंशन योजना: 58 वर्ष से अधिक उम्र के किसानों और खेतिहर मज़दूरों के लिए पेंशन योजना।
  4. मुआवजा और रोज़गार: पिछले आंदोलन के दौरान मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा और रोज़गार देने की मांग।
  5. न्याय और आयात शुल्क: लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने, और कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क में कमी लाने की मांग।
  6. मनरेगा: मनरेगा को बढ़ाने और इसकी दिहाड़ी को 700 रुपये तक बढ़ाने की मांग।
  7. बीज और बिजली कानून: बीज, कीटनाशकों और उर्वरकों की गुणवत्ता पर सख्त कानून और बिजली संशोधन विधेयक को रद्द करने की मांग।
किसानों द्वारा ‘दिल्ली चलो’ मार्च का आयोजन

किसानों ने चंडीगढ़ में लंबी चर्चाओं के बाद ‘दिल्ली चलो’ मार्च का निर्णय लिया। मार्च, ट्रैक्टर-ट्रॉलियों पर, फतेहगढ़ साहिब जिले से शंभू की ओर और संगरूर से खनौरी की ओर शुरू हुआ।

किसान मजदूर संघर्ष समिति और संयुक्त किसान मोर्चा जैसे संगठनों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कानूनी गारंटी और ऋण माफी सहित अन्य मांगों के लिए इस नवीनतम किसान विरोध का नेतृत्व किया। प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स को हटाने और उनके रास्ते में आने वाली अन्य बाधाओं को दूर करने का संकल्प लिया।

किसान आंदोलन की चुनौतियां और सरकारी प्रतिक्रिया

चुनौतियां और सरकारी प्रतिक्रिया के संदर्भ में, किसान आंदोलन के मद्देनजर विभिन्न आयाम सामने आए हैं।

चुनौतियां:
  1. सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा: किसानों के बड़े पैमाने पर आंदोलन से सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। बड़े समूहों का एकत्रित होना और दिल्ली की ओर मार्च करना लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति को जटिल बना सकता है।
  2. यातायात और अवरोध: किसानों के मार्च से दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में यातायात में बाधा और लोगों के दैनिक जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
  3. किसानों की मांगों और सरकारी नीतियों के बीच असहमति: MSP की गारंटी जैसी मांगों और सरकारी नीतियों के बीच असहमति से वार्ता और समझौते की प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
सरकारी प्रतिक्रिया:
  1. सुरक्षा उपाय: सरकार ने दिल्ली और हरियाणा सीमा पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की है, जिसमें बैरिकेडिंग, धारा 144 का लागू करना और सीमाओं पर पुलिस तैनाती शामिल है।
  2. वार्ता की पेशकश: सरकार ने किसान नेताओं के साथ वार्ता की कई दौर की पेशकश की है, जिसमें किसानों की मांगों पर चर्चा की गई। हालांकि, अभी तक इसमें कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
  3. न्यायिक प्रक्रिया: सरकार ने कुछ मुद्दों, जैसे कि 2020-21 के आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने पर सहमति जताई है, लेकिन MSP की गारंटी वाले कानून की मांग पर अभी भी असहमति बनी हुई है।
  4. समिति का गठन: सरकार ने प्रस्ताव दिया है कि शेष मुद्दों को एक समिति के गठन के माध्यम से सुलझाया जाए, जिसमें किसान नेताओं को भी शामिल किया जाए।
किसान नेताओं के बयान

किसान नेताओं ने इस विरोध मार्च के दौरान अपनी भावनाओं और मांगों को व्यक्त किया। उनके बयान सरकार के प्रति उनकी अपेक्षाओं और विरोध के प्रति उनके संकल्प को दर्शाते हैं।

सरवन सिंह पंधेर, किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव, ने कहा, “हम कभी भी सरकार के साथ टकराव नहीं चाहते थे, उन्होंने हमें इन आंसू गैस के गोलों से चोट पहुंचाई है, हम पीछे नहीं हटने वाले हैं।” उनका यह बयान विरोध की गंभीरता और किसानों की दृढ़ता को दर्शाता है।

जगजीत सिंह दल्लेवाल, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के संयोजक, ने कहा, “यह लोकतंत्र का चेहरा है… जो सरकार हमारे साथ कर रही है… हम पर हमला किया जा रहा है, हम सिर्फ अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग कर रहे थे… हम बड़ी संख्या में यहां पहुंचने के लिए लोगों से अपील कर रहे हैं।” इस बयान से किसानों के संघर्ष और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ाई की भावना स्पष्ट होती है।

किसान नेताओं के ये बयान उनके संघर्ष की गहराई को दर्शाते हैं और सरकार से उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करने का आग्रह करते हैं। ये बयान न केवल उनकी चिंताओं को व्यक्त करते हैं बल्कि एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे के प्रति जागरूकता भी फैलाते हैं।

इस बार किसके बैनर तले किसान आंदोलन?

इस बार का किसान आंदोलन मुख्य रूप से संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के बैनर तले आयोजित किया जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा विभिन्न किसान संगठनों का एक गठबंधन है, जिसमें देश भर के कई किसान संघ शामिल हैं। इस बार के आंदोलन में, किसान मजदूर मोर्चा (KMM) भी शामिल है, जो पंजाब स्थित किसान संगठनों और यूनियनों का एक समूह है।

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के अलावा, किसान मजदूर संघर्ष समिति (KMSS) भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। KMSS पहले के आंदोलनों में भी सक्रिय रही है और इसने अपनी अलग पहचान बनाई है।

ये संगठन मिलकर किसानों की मुख्य मांगों को उठा रहे हैं, जिसमें सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने वाले कानून की मांग प्रमुख है। इस आंदोलन का उद्देश्य किसानों के हितों की रक्षा करना और सरकार से उनकी मांगों को पूरा करने की अपील करना है।

न्यायिक हस्तक्षेप

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने किसानों के विरोध पर दो अलग-अलग याचिकाओं पर पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों को नोटिस जारी किया और केंद्र को मामले में एक पक्ष बनाने के निर्देश जारी किए। मामला 15 फरवरी को सुनवाई के लिए आएगा।

इस प्रकार, पंजाब के किसानों का यह विरोध मार्च उनकी मांगों को लेकर उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है, साथ ही सुरक्षा बलों और सरकार की प्रतिक्रिया के माध्यम से चुनौतियों और तनावों को भी उजागर करता है

You May Also Check 
OctaFX से अपना डिमैट अकाउंट कैसे खोले?
Kotak Mahindra Bank Net Banking

1 thought on “Kisan Andolan 2.0- क्या है अन्नदाताओं की मांगे एवं शर्तें, और क्या है आंदोलन की रणनीति”

Leave a Comment