आर्यभट की जीवनी | Aryabhatta Biography in Hindi 2024

Aryabhatta biography in hindi: आर्यभट की जीवनी, जीवन परिचय Aryabhatta biography in hindi आर्यभट  प्राचीन  भारत  के  महान  गणितज्ञ,  ज्योतिषविद   एवं  खगोलशास्त्री  थे.  उस  समय  अनेकों  भारतीय  विद्वानों,  जैसे-:  वराहमिहिर,  ब्रह्मगुप्त,  भास्कराचार्य,  कमलाकर, आदि  में  आर्यभट  का  नाम  भी  शामिल  हैं.

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आर्यभट की जीवनी (Aryabhatta Biography in Hindi)

पूरा नाम          आर्यभट
जन्म          दिसंबर, ई.स.476
मृत्यु          दिसंबर, ई.स. 550 [74  वर्ष ]
जन्म स्थान          अश्मक,  महाराष्ट्र,  भारत
कार्यक्षेत्र          गणितज्ञ,  ज्योतिषविद   एवं  खगोलशास्त्री
कार्यस्थल          नालंदा  विश्वविद्यालय
रचनायें          आर्यभटीय,  आर्यभट सिद्धांत
योगदान          पाई  एवं  शून्य  की  खोज

आर्यभट का जन्म कब हुआ, शुरूआती जीवन 

आर्यभट  के  जन्म  के संबंध  में  कोई  ठोस  प्रमाण  तो उपलब्ध  नही  हैं,  परन्तु  कहा  जाता  हैं  कि  भगवान  बुद्ध  के  समय  अश्मक  देश  के  कुछ  लोग  मध्य  भारत  में  नर्मदा  नदी  और  गोदावरी  नदी  के  बीच  बस  गये .  ऐसा   माना  जाता  हैं  कि  आर्यभट  का  जन्म  भी  ई.स. 476  में  इसी  स्थान  पर  हुआ  था . एक  अन्य  मान्यता  के  अनुसार  आर्यभट  का  जन्म  बिहार  में  पटना  में  हुआ  था,  जिसका  प्राचीन  नाम  पाटलीपुत्र  था , जिसके  समीप  स्थित  कुसुमपुर  में  उनका  जन्म  माना  जाता  हैं.

आर्यभट की शिक्षा (Aryabhatta Education)

इस   संबंध  में  इतिहासकारों  के  पास  पर्याप्त  जानकारी  उपलब्ध  नहीं  हैं , परन्तु  ये  स्पष्टतः  ज्ञात  हैं  कि  आर्यभट  अपने  जीवनकाल  में  किसी  समय  उच्च  शिक्षा  प्राप्त  करने  हेतु  कुसुमपुर  अवश्य  गये  थे,  जो  कि  उस  समय  उच्च  शिक्षा  हेतु   प्रसिद्ध  विश्वविद्यालय  था.

आर्यभट के कार्य (Aryabhatta Work and Contribution)

आर्यभट  ने  गणित  एवं  खगोलशास्त्र  पर  अनेक  रचनायें  की,  इसमें  से  कुछ  रचनाये  विलुप्त  हो  चुकी  हैं.  परन्तु  आज  भी  कई  रचनाओ  का  प्रयोग  किया  जाता  हैं,  जैसे  -: आर्यभटीय.

आर्यभटीय(Aryabhatiya)

यह  आर्यभट  की  एक  गणितीय  रचना  हैं,  जिसमे  अंकगणित,  बीजगणित,  त्रिकोंमिति का  विस्तृत  वर्णन  हैं.  साथ  ही  इसमें  सतत  भिन्न  [ Continued  Fractions ],  द्विघात  समीकरण  [ Quadratic Equations ],  ज्याओं  की तालिका  [ Table  of  Sines ],  घात  श्रंखलाओ   का  योग  [ Sums  of Power  Series ],  आदि  भी  शामिल  हैं.

आर्यभट  के  कार्यों  का  वर्णन  मुख्यतः  इसी  रचना [आर्यभटीय] से  मिलता  हैं.  संभवतः  इसका  यह  नाम  भी  स्वयं  आर्यभट  ने  नहीं,  बल्कि  बाद  के  समीक्षकों  ने  यह  नाम  दिया. भास्कर  प्रथम,  जो  आर्यभट  के  शिष्य  थे,  वे  इस  रचना  को  अश्मक – तंत्र  [ Treatise  from  the  Ashmaka]कहते  थे.  सामान्य  रूप  से  इसे आर्य – शत – अष्ट  [ Aryabhat’s  108 ] भी  कहा  जाता  हैं  क्योंकि  इसमें  108  छंद / श्लोक  हैं.  यह  बहुत  ही  सार – गर्भित  रूप  में  लिखा  गया  सूत्र – साहित्य  हैं,  जिसकी  प्रत्येक  पंक्ति  प्राचीन  जटिल  प्रथाओ  का  वर्णन  करती  हैं.  यह  रचना,  जो  कि  108  छंदों  एवं  13  परिचयात्मक  छंदों  से  बनी  हैं  और  यह  4  पदों  अथवा  अध्यायों  में  विभक्त  हैं;  वे  अध्याय  निम्न-लिखित  हैं -:

  1. गीतिकापद [ 13 छंद ],
  2. गणितपद [ 33 छंद ],
  3. कालक्रियापद [ 25 छंद ],
  4. गोलपद [ 50 छंद ].

आर्य – सिद्धांत (Arya Siddhanta)

आर्यभट  की  यह  रचना  पूर्ण  रूप  से  उपलब्ध  नहीं  हैं.  परन्तु  इसके  अवशेषों  में  अनेक  खगोलीय  उपकरणों  के  उपयोग  का  वर्णन  मिलता  हैं,  जैसे -:  शंकु – यन्त्र [ Gnomon ],  छाया – यन्त्र [ Shadow Instrument ],  बेलनाकार  यस्ती –यन्त्र [ Cylindrical Stick ],  छत्र–यन्त्र [ Umbrella  Shaped  Device],  जल – घडी  [ Water  Clock ],  कोण – मापी  उपकरण  [ Angle  Measuring Device ],  धनुर – यंत्र / चक्र  यंत्र [ Semi – Circular /  Circular Instrument],  आदि.

इस  रचना  में  सूर्य  सिद्धांत  का  प्रयोग  किया  गया  हैं.  सूर्य  सिद्धांत  में  सूर्योदय  की  उपेक्षा  की  जाती  हैं  और  इसमें  अर्द्ध  – रात्रि  गणना [ Midnight Calculations ] का  उपयोग  किया  जाता  हैं.

आर्यभट का योगदान(Aryabhatta Contribution)

आर्यभट  द्वारा  गणित  एवं  खगोलशास्त्र  के  क्षेत्र  में   अनेक  योगदान  दिये,  जिनमें  से  कुछ  निम्नानुसार  हैं -:

गणितज्ञ  के रूप  में  योगदान (Aryabhatta Contribution to Mathematics)

पाई की  खोज (History of Pai in Hindi)

आर्यभट  ने  पाई  के  मान  की  खोज  की,  इसका  वर्णन  आर्यभटीय  के  गणितपाद  10  में  मिलता  हैं. वे  लिखते  हैं -:

सौ  में  चार  जोड़ें,  फिर  आठ  से  गुणा  करें  और  फिर  62,000  जोड़ें  और  20,000  से  भागफल  निकालें,  इससे  प्राप्त  उत्तर  पाई  का  मान  होगा  अर्थात्

[ ( 4 + 100) * 8 + 62,000 ] / 20,000 = 62,832 / 20,000 = 3.1416

शून्य की  खोज (History of zero in Mathematics)  

आर्यभट  ने  शून्य  की  खोज  की, जो  कि  गणित  की  सर्वश्रेष्ठ  खोज  हैं,  जिसके  अभाव   में  गणनाएँ  असंभव  होती  क्योंकिं  किसी  संख्या  के  आगे  शुन्य  लगाते  ही  उसका  मान  10  गुना  बढ़  जाता  हैं.  इन्होने   ही  सर्वप्रथम  स्थानीय  मानक  पद्धति  के  बारे  में  जानकारी  दी.

त्रिकोणमिति (Aryabhatta Contributions Trigonometry) 

आर्यभटीय  के  गणितपद  6  में  त्रिभुज  के  क्षेत्रफल  की  बात   कही  हैं.

आर्यभट  ने  Concept  of Sine  का  भी  विवेचन  किया  हैं,  जिसे  उन्होंने  ‘अर्द्ध  – ज्या’  [ Half – Chord ]  नाम  दिया  हैं.  सरलता  के  लिए  इसे  ‘ज्या’  कहा  जाता  हैं.

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बीजगणित (Aryabhatta Algebra)

आर्यभट  ने  आर्यभटीय  में  वर्गों  एवं  घनो  [ Squares & Cubes ]  की  श्रंखला  के  जोड़  का  भी  उचित  परिणाम  का  वर्णन  किया  हैं -:

1+ 2+ …………. + n=[ n ( n+1) ( 2n + 1) ]  / 6

&

13 + 23+ ………….. + n= ( 1+2 + ……….. + n )2

खगोलशास्त्री  के  रूप  में  योगदान  (Aryabhatta as an Astronomer)

आर्यभट  के  खगोलशास्त्र  के सिद्धांतों  को  सामूहिक  रूप  से  Audayaka  System  कहते  हैं.  उनके  बाद  की  कुछ  रचनाओं  में  पृथ्वी  के  परिक्रमा  की  बात  कही  गयी  हैं  और  उनका  यह  भी  मानना  था  कि  पृथ्वी  की  कक्षा  गोलाकार  नहीं,  अपितु  दीर्घवृत्तीय  हैं.

उदाहरण  के  रूप  में  यदि  कोई  व्यक्ति  किसी  नाव  या  ट्रेन  में  बैठा  हैं  और  नाव  या  ट्रेन  जब  आगे  बढती  हैं  तो  उसे  वृक्ष,  मकान,  आदि  वस्तुएं  पीछे  की  ओर  जाती  हुई  प्रतीत  होती  हैं,  जबकि  ऐसा  होता  नहीं  हैं.  इसी  तरह  गतिमान  पृथ्वी  पर   से   स्थिर  नक्षत्र  भी  विपरीत  दिशा  में  जाते  दिखाई  देते  हैं.  हमें  ऐसा  इसलिए  प्रतीत  होता  है  क्योंकिं  पृथ्वी  अपने  अक्ष  पर  घुमती  हैं  और  इसकी  यह  गतिशीलता  यह  भ्रम  उत्पन्न  करती  हैं.

सौरमंडल की  गतिशीलता [Motions of the Solar System] 

आर्यभट  ने  यह  तथ्य  स्थापित  किया  कि  पृथ्वी  अपने  अक्ष  पर  निरंतर  रूप  से  घुमती  रहती  हैं  और   यहीं   कारण  हैं  कि  आकाश  में  तारों  की  स्थिति  बदलती  रहती  हैं.  यह  तथ्य  इसके  बिल्कुल  विपरीत  हैं  कि  आकाश  घूमता  हैं.इसका  वर्णन  उन्होंने  आर्यभटीय  में  भी  किया  हैं.

ग्रहण [Eclipse] 

हिन्दू  मान्यता  के  अनुसार  राहु  नामक  ग्रह  द्वारा  सूर्य  और  चन्द्रमा  को  निगल  जाने  के  कारण  क्रमशः  सूर्यग्रहण  और  चंद्रग्रहण  होता  हैं. आर्यभट  द्वारा  इस  धारणा  को  गलत  सिद्ध किया  गया  और  उन्होंने इस  सूर्य  ग्रहण  एवं  चन्द्र  ग्रहण  का  वैज्ञानिक  ढंग  से  वर्णन  किया  हैं.  उन्होंने  ये  बताया  कि  चाँद  एवं  अन्य  ग्रह  सूर्य – प्रकाश  के  परावर्तित [ Reflection ] होने  के  कारण  प्रकाशमान  होते  हैं,  वास्तव  में  उनका  अपना  कोई  प्रकाश  नहीं  होता. आर्यभट  ने  स्पष्ट  किया  कि  ये  ग्रहण  नामक  घटना  पृथ्वी  पर  पड़ने  वाली  छाया  हैं  अथवा  पृथ्वी  की  छाया  हैं.

सूर्यग्रहण (Solar Eclipse)

पृथ्वी  अपने  अक्ष  पर  घूमते  हुए  सूर्य  की  परिक्रमा  करती  हैं  और  चन्द्रमा  अपने  अक्ष  पर  घूमते  हुए  पृथ्वी  की  परिक्रमा  के  साथ  ही  सूर्य  की  भी  परिक्रमा  करता  हैं  और  इस  दौरान  जब  पृथ्वी  और  सूर्य  के बीच  जब  चन्द्रमा  आ  जाता  हैं  तो चंद्रमा  के  बीच  में  आने  से  सूर्य  का  उतना  हिस्सा  छुप  जाता  हैं  और  वह  हमें  काला  या  प्रकाशहीन  दिखाई  देता  हैं  और  यह  घटना  सूर्यग्रहण  कहलाती  हैं.

चंद्रग्रहण (Lunar Eclipse)

चूँकि  चन्द्रमा  अपने  अक्ष  पर  घूमते  हुए  पृथ्वी  की  परिक्रमा  के   साथ  ही  सूर्य  की  भी  परिक्रमा  करता  हैं  और  इस  दौरान  सूर्य  और  चन्द्रमा  के  बीच  पृथ्वी  आ  जाती  है  तो  पृथ्वी  की  परछाई  चन्द्रमा  पर  पड़ती  हैं  और  वह  सूर्य  प्रकाश  प्राप्त  नहीं  कर  पाता  और  यह  घटना  चंद्रग्रहण  कहलाती  हैं.  पृथ्वी  की  छाया  जितनी  बड़ी  होती  है,  ग्रहण  भी  उतना  ही  बड़ा  कहलाता  हैं.

कक्षाओं का  वास्तविक  समय (Sidereal  Periods)

आर्यभट  ने  पृथ्वी  की  एक परिक्रमा  का  बिल्कुल  उचित  समय  ज्ञात  किया.  यह  अपने  अक्ष  पर  घूमते  हुए  सूर्य  की  परिक्रमा  प्रतिदिन  24  घंटों  में  नहीं,  बल्कि  23  घंटें,  56  मिनिट  और  1  सेकेण्ड  में  पूरी  कर  लेती  है.  इस  प्रकार  हमारे  1  साल  में  365  दिन,  6  घंटे,  12  मिनिट  और  30  सेकेंड  होते  हैं.

ज्योतिर्विद  के  रूप  में  योगदान (Astronomer Contribution)

आर्यभट  ने  लगभग  डेढ़  हजार  साल  पहले  ही  ज्योतिष  विज्ञान  कि  खोज  कर  ली  थी,  जब  इतने  उन्नत  साधन  एवं  उपकरण  भी  उपलब्ध  नही  थे.  .

आर्यभट के अन्य रोचक  तथ्य  (Aryabhatta Interesting Facts)

  1. आर्यभट द्वारा  रचित  आर्यभटिय  का  उपयोग  आज  भी  हिन्दू  पंचांग  हेतु  किया  जाता  हैं.
  2. गणित और  खगोलशास्त्र  में  उनके  अतुलनीय  योगदान  को  देखते  हुए  भारत  के  प्रथम  उपग्रह  का  नाम  उन्ही  के  नाम  पर  ‘ आर्यभट ’ रखा  गया.
  3. आर्यभट ने दशमलव  प्रणाली  का  निर्माण  किया.
  4. आर्यभट ने  सूर्य  सिद्धांत  की  भी  रचना  की.
  5. 23 वर्ष  कि  आयु  में  आर्यभट   ने  ‘ आर्यभटिय ग्रन्थ ’ की  रचना  की,  जिसकी  उपयोगिता  एवम्  सफलता  को  देखते  हुए  तत्कालीन  राजा  बुद्धगुप्त  ने  उन्हें नालंदा  विश्वविद्यालय  का  प्रमुख  बना  दिया.
  6. आर्यभट ने बिहार  के  तरेगाना  क्षेत्र  में सूर्य  मंदिर  में  एक  निरिक्षण  शाला  की स्थापना  की.
  7. विद्वानों के  अनुसार  अरबी  रचनायें  ‘ अल – नत्फ़ ’ और  ‘ अल – नन्फ ’  आर्यभट  के  कार्यों  का  ही  अनुवाद  हैं.
  8. आर्यभट ने  अंकों  को  दर्शाने  के  लिए  कभी  भी  ब्राह्मी  लिपि  का  उपयोग  नहीं  किया,  जो  कि  वैदिक  समय  से  सांस्कृतिक  प्रथा  के  अनुसार  चले  आ रहे  थे. उन्होंने  सदैव  Alphabets  ही  प्रयोग  किये.

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